5 पर्वतीय मंदिरों में से एक, यमुनोत्री एक प्रमुख तीर्थस्थल है जो उत्तराखण्ड राज्य के उत्तरकाशी जिले में स्थित है। इसे हिंदू धर्म की पावन नदी यमुना की उत्पत्ति का स्थान माना जाता है और यह हिंदू धर्म की चार धाम यात्रा का अभिन्न भाग है। यहाँ ब्रह्माजी के मंदिर के अतिरिक्त अन्य मंदिर भी हैं जो यहाँ के पवित्रतम स्थानों में से एक हैं।
यमुनोत्री पर्यटन के लिए सर्वाधिक चुने जाने वाले स्थानों में से एक है, जहाँ आप अपनी आत्मा को आराम दे सकते हैं और प्राकृतिक सुंदरता का आनंद ले सकते हैं।यह पर्वतीय जलधाराओं, प्राकृतिक सौंदर्य और धार्मिक आदान-प्रदान का एक अद्वितीय संगम है।
यमुनोत्री पश्चिमी हिमालय की प्रकृति के अद्वितीय सौंदर्य की जगह है और अपने पावन महत्त्व के लिए लोगों को आकर्षित करती है। इस धार्मिक स्थल में आपके मन की उत्तेजना सुखद अनुभवों से भरी होती है और आपको एक आत्मीय प्रकाश की अनुभूति होगी। यह धार्मिक तीर्थस्थल तीर्थ यात्रियों और भगवान शिव के भक्तों के बीच लोकप्रिय है।
यमुनोत्री उन लोगों के बीच भी लोकप्रिय है जो पर्वतारोहण, ट्रैकिंग, आध्यात्म और प्राकृतिक सौंदर्य में रुचि रखते हैं। इसके आसपास के प्राकृतिक दृश्य और घास के मैदानों की छटा यहाँ के वातावरण को और भी सुन्दर बनाती है। यमुनोत्री के बारे में कई पौराणिक कथाएं हैं। एक कथा के अनुसार, देवी यमुना को एक माता और भगवान विष्णु की पत्नी के रूप में माना जाता है। इस कथा के अनुसार, यमुना माता एक नदी के स्वरूप में पृथ्वी पर इसी स्थान पर प्रकट हुई थी और यहाँ उनकी पूजा की जाती है।
यमुनोत्री का इतिहास इसके प्राचीन महर्षि यमदेव से जुड़ा हुआ है। मान्यता के अनुसार, यमदेव ने यहाँ तपस्या की और इसी से यमुना नदी की उत्पत्ति हुई थी। इसलिए इस जगह का नामकरण यमुनोत्री के रूप में हुआ।पुराणों में यमुना को सूर्यतनया कहा गया है।
सूर्यतनया का शाब्दिक अर्थ है सूर्य की पुत्री। सूर्य की छाया और संज्ञा नामक दो पत्नियों से यमुना, यम, शनिदेव तथा वैवस्वत मनु प्रकट हुए। इस प्रकार यमुना यमराज और शनिदेव की बहन हैं। भ्रातृ द्वितीया (भैयादूज/भाई दूज) पर यमुना के दर्शन और मथुरा में स्नान करने का विशेष महात्म्य है।
यमुना सर्वप्रथम जलरूप में कलिंद पर्वत पर आयीं, इसलिए यमुना का एक नाम कालिंदी भी है। सप्तऋषि कुंड, सप्त सरोवर कलिंद पर्वत के ऊपर ही अवस्थित हैं। यमुनोत्री धाम को सकल सिद्धियों को प्रदान करने वाला कहा गया है। पुराणों में उल्लेख है कि भगवान श्रीकृष्ण की आठ पटरानियों में एक प्रियतर पटरानी कालिंदी यमुना भी हैं।
यमुना के भाई शनिदेव का अत्यंत प्राचीन मंदिर खरसाली में स्थित है।महाभारत के अनुसार जब पाण्डव उत्तराखंड की तीर्थयात्रा पर आए तो वे पहले यमुनोत्री गए और उसके पश्चात् गंगोत्री और बाद में केदारनाथ, बद्रीनाथजी की ओर बढ़े थे, तभी से उत्तराखंड की यात्रा वामावर्त की जाती है।यहाँ के मंदिर यात्रियों को मन की शांति, ध्यान और आनंद का अनुभव कराते हैं।
यहाँ का वातावरण धार्मिकता से भरपूर है और यहाँ आने वाले यात्री भगवान यमराज की कृपा और आशीर्वाद का आनंद ले सकते हैं। यमुनोत्री आपके अंदर विद्यमान अंधकार में विद्यमान खुशियों का द्वार है। इस स्थान का दर्शन करने से मन को प्राकृतिक सौंदर्य और आनंद प्राप्त होता है। यहाँ की विश्रामदायक शांति और स्वर्गीय वातावरण यात्रियों के ह्रदय को प्रसन्न और आनंदित कर देता है।
देश के सभी प्रमुख शहरों से हरिद्वार, ऋषिकेश और देहरादून तक सड़क, रेल मार्ग या हवाई जहाज के माध्यम से पहुंचा जा सकता है। इन स्थानों से हनुमान चट्टी तक सड़क मार्ग से सुगमता से पहुंचा जा सकता है। हनुमान चट्टी यमुनोत्री तीर्थ जाने का अंतिम मोटर अड्डा है, जिसकी ऋषिकेश से कुल दूरी लगभग 200 किलोमीटर है।
हनुमान चट्टी से नारद चट्टी, फूल चट्टी व जानकी चट्टी से होकर मंदिर तक 14 किलोमीटर पैदल ही चलना होता था किन्तु अब हल्के वाहनों से जानकी चट्टी तक पहुँचा जा सकता है जहाँ से मंदिर मात्र 5 किलोमीटर दूर रह जाता है। किन्तु आज भी यात्री पैदल यात्रा को अधिक महत्त्व देते हैं क्योंकि यह यात्रियों को पर्यटन की रमणीयता का आनंद देता है और उन्हें प्राकृतिक सौंदर्य से जुड़े हर क्षण का आनंद लेने की सुविधा देता है।
इन चट्टियों में जानकी चट्टी अधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि यहाँ रात्रि विश्राम का अच्छा प्रबंध होने के कारण अधिकांश यात्री रात्रि विश्राम के लिए इसी स्थान का चयन करते हैं। यहाँ त्रिवेणी नामक स्थान पर पहुंचने के बाद, यात्री यमुना के दर्शन पाते हैं। अक्षय तृतीया के पावन पर्व पर यमुनोत्री मंदिर के कपाट खुलते हैं और दीपावली (अक्टूबर-नवंबर) के पर्व पर बंद हो जाते हैं।
शीतकाल में यह स्थान पूर्ण रूप से हिमाच्छादित रहता है। यमुनोत्री मंदिर के आसपास के क्षेत्र में गर्म जल के अनेक सोते हैं। ये सोते अनेक कुंडों में गिरते हैं। इन कुंडों में सबसे प्रसिद्ध कुंड सूर्य कुंड है। यह कुंड अपने उच्चतम तापमान के लिए विख्यात है। भक्तगण देवी को प्रसाद के रूप में चढ़ाने के लिए कपडे की पोटली में चावल और आलू बांधकर इसी कुंड के गर्म जल में पकाते हैं।
देवी को प्रसाद चढ़ाने के पश्चात भक्तजन इन्हीं पकाये हुए चावलों को प्रसाद के रूप में अपने घर ले जाते हैं। सूर्य कुंड के निकट ही एक शिला है जिसे दिव्य शिला कहते हैं।
इस शिला को दिव्य ज्योति शिला भी कहते हैं। भक्तगण भगवती यमुना की पूजा करने से पहले इस शिला की पूजा करते हैं।
एक तीर्थ यात्रा का हिस्सा होने के कारण, आपको यहाँ कई आध्यात्मिक और धार्मिक स्थलों का पर्यटन करने का भी अवसर मिलता है। इस यात्रा के दौरान, श्रद्धालुओं को चाहिए कि वे यहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य तथा धार्मिक महत्वपूर्णताओं का आनंद लें। इस संसार में किसी अन्य स्थान पर इस प्रकार का विशेष और आनंददायक अनुभव प्राप्त नहीं होगा।
यमुनोत्री यात्रा धार्मिक, आध्यात्मिक और पर्यटन का एक अद्वितीय मिश्रण है। इसे लोग एक मनोहारी और संयमित यात्रा मानते हैं, जहाँ प्रकृति और आध्यात्मिक अनुभव के बीच आनंद को प्राथमिकता दी जाती है। यह स्थान पर्यटकों को शांति और मन की शुद्धता का एक अद्वितीय अनुभव प्रदान करता है।
सारांशतः यदि आपकी रूचि पर्यटन, धर्म, आध्यात्म, पर्वतारोहण, ट्रैकिंग और प्राकृतिक सौंदर्य में से किसी में भी हो, तो भाग-दौड़ और तनाव से भरे जीवन में से कुछ क्षण निकालकर इस यात्रा का आनंद अवश्य लें और निश्चित ही यह यात्रा आपके जीवन को उत्साह, उमंग, शांति से भर देगी।