हिमालय की गोद में स्थित एक खूबसूरत नगरी मानी जाने वाली वैष्णो देवी, जम्मू और कश्मीर राज्य के कटरा नगर के समीप त्रिकुटा पर्वत पर स्थित है। त्रिकुटा की पहाड़ियों पर स्थित गुफा में माता वैष्णो की तीन स्वयंभू मूर्तियाँ हैं।
हिन्दू मान्यता अनुसार, माता वैष्णो देवी आदिशक्ति माँ दुर्गा का स्वरूप है जिन्हें त्रिकुटा और वैष्णवी नाम से भी जाना जाता है। मान्यतानुसार जिस स्थान पर माँ वैष्णो देवी ने भैरवनाथ का वध किया, वह स्थान ‘भवन’ के नाम से प्रसिद्ध है।
इस स्थान पर देवी महाकाली (दाएँ), महासरस्वती (बाएँ) और देवी महालक्ष्मी (मध्य में), पिण्डी के रूप में गुफा में त्रेता युग से विराजमान है, इन तीनों पिण्डियों के इस सम्मिलित रूप को वैष्णो देवी कहा जाता है और माता वैष्णो देवी अपने शाश्वत निराकार रूप मे यहाँ विराजमान है। देवी को समर्पित यह मंदिर सबसे पवित्र, सबसे प्राचीन और सबसे विख्यात हिन्दू मंदिरों में से एक है। वैष्णो देवी को भक्त प्यार से माता रानी के नाम से भी बुलाते हैं। वेद पुराणो के अनुसार यह मंदिर 108 शक्ति पीठों मे भी शामिल है।
इस पवित्र मंदिर के दर्शन करने हर साल लाखों श्रद्धालु यात्री यहाँ आते हैं और अपनी भक्ति और आस्था के प्रतीक के रूप में माता के चरण स्पर्श करते हैं और चढ़ावा चढ़ाते हैं। यह मंदिर धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक अनुभव के साथ-साथ आत्मा को पुनर्जीवित करने का एक अद्वितीय स्थान है। माता वैष्णो देवी मंदिर लगभग 5500 फ़ीट की ऊँचाई पर स्थित है। इस मंदिर की विशेषता इसके प्राकृतिक सौंदर्य और मानसिक शांति में है।
यहाँ धार्मिक और आध्यात्मिक संगठना के बीच अविस्मरणीय संयोग सदैव बना रहता है। एक ओर जहाँ हरियाली और पहाड़ियों का सुंदर दृश्य होता है, वहीं दूसरी ओर पर्वत की ऊँचाईयों के बीच एक आनंददायी सुन्दर नदी बहती है, जो मंत्रमुग्ध कर देती है। मंदिर क्षेत्र को घेरे हरी-भरी पहाड़ियाँ, घने जंगल और ऊँचे पेड़ स्वर्ग की अनुभूति देते हैं। सूखे पत्तों से ढकी नदी की हरी धारा जहाँ बह रही होती है, वहाँ पांडितों के वाद्य यंत्रों की तान धीरे-धीरे सुनाई देती है। इस प्राकृतिक सौंदर्य से युक्त वातावरण में स्थित मंदिर में आप खुद को आत्मसात कर लेते हैं।
मान्यता है कि माता वैष्णो देवी ने त्रेता युग में माता पार्वती, सरस्वती और लक्ष्मी के रूप में मानव जाति के कल्याण के लिए एक सुंदर राजकुमारी का अवतार लिया था। उन्होंने त्रिकुटा पर्वत पर तपस्या की। बाद में उनका शरीर तीन दिव्य ऊर्जाओं महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती के सूक्ष्म रूप में विलीन हो गया। स्थानीय लोगों के अनुसार, वैष्णो देवी मंदिर की अति गहरी धारा लगभग 7000 वर्ष पहले निकली थी।
मंदिर के संबंध में कई तरह की कथाएं प्रचलित हैं। एक बार त्रिकुटा की पहाड़ी पर एक सुंदर कन्या को देखकर भैरवनाथ उसे पकड़ने के लिए दौड़े। भैरवनाथ से बचने के लिए वह कन्या वायु रूप में परिवर्तित होकर पर्वत की ऊंचाई की ओर चली गई। भैरवनाथ भी उनके पीछे भागे। माना जाता है कि तभी माँ की रक्षा के लिए पवनपुत्र हनुमान वहाँ पहुंच गए।
हनुमानजी को प्यास लगने पर माता ने उनके आग्रह पर पहाड़ पर धनुष से बाण चलाकर एक जलधारा निकाली और उस जल में अपने केश भी धोए। फिर वहीं एक गुफा में प्रवेश कर माता ने नौ माह तक तपस्या की और हनुमानजी ने उस गुफा के बाहर पहरा दिया। कुछ समय बाद भैरवनाथ फिर वहाँ आ गए। तब माता गुफा के दूसरी ओर से मार्ग बनाकर बाहर निकल गईं। यह गुफा आज भी अर्द्धकुमारी, आदिकुमारी और गर्भजून के नाम से प्रसिद्ध है।
जब भैरवनाथ गुफा में प्रवेश करने लगा, तब वहां पहरा दे रहे हनुमानजी ने उसे युद्ध के लिए ललकार और दोनों के बीच महायुद्ध हुआ। इस युद्ध का कोई अंत ना देखकर माता वैष्णवी ने महाकाली का रूप लेकर भैरवनाथ का वध कर दिया।
अपने वध के बाद भैरवनाथ को अपनी भूल का पश्चाताप हुआ और उसने माँ से क्षमादान की भिक्षा मांगी। माता वैष्णो देवी जानती थी कि उन पर हमला करने के पीछे भैरव की प्रमुख मंशा मोक्ष प्राप्त करने की थी।
तब उन्होंने न केवल भैरव को पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति प्रदान की, बल्कि उसे वरदान देते हुए कहा कि मेरे दर्शन तब तक पूरे नहीं माने जाएंगे, जब तक कोई भक्त, मेरे दर्शनों के बाद तुम्हारे दर्शन नहीं करेगा।
मान्यतानुसार, भैरवनाथ का वध करने पर उसका शीश भवन से 3 किलोमीटर दूर जिस स्थान पर गिरा, आज उस स्थान को भैरव मंदिर के नाम से जाना जाता है और आज भी माता वैष्णो देवी के दर्शन करने वाले सभी भक्त भैरवनाथ के दर्शन करके अपनी यात्रा को पूरी करते हैं।
यदि आप माता वैष्णो देवी की यात्रा करना चाहते हैं तो यहाँ का निकटतम सबसे बड़ा शहर जम्मू है जो कि रेलमार्ग, सड़कमार्ग और वायुमार्ग द्वारा भारत के सभी बड़े शहरों से जुड़ा है। जम्मू तक बस, टैक्सी, ट्रेन तथा हवाई जहाज के द्वारा पहुँचा जा सकता है। वैष्णो देवी का निकटतम नगर कटरा है, जहाँ जम्मू से सड़क और रेल मार्ग से पहुँचा जा सकता है। माता के दर्शन के लिए कटरा से पर्वत पर चढ़ाई करने हेतु पदयात्रा के अलावा, मंदिर तक जाने के लिए पालकियाँ, खच्चर तथा विद्युत-चालित वाहन भी उपलब्ध होते हैं।
किन्तु आज भी साधनों की उपलब्धता के बावजूद भक्तगण माता के दर्शनों के लिए पद यात्रा को ही प्राथमिकता देते हैं जिसमें वे प्राकृतिक दृश्यों का आनंद लेने के साथ माता के जयकारे लगाते हुए हर्षोल्लास से चढ़ाई चढ़ते हैं।
वैष्णो देवी मंदिर एक आध्यात्मिक पर्यटन स्थल है जहां भक्तों को अपनी आत्मा के साथ जुड़ने का अवसर मिलता है।
यह एक ऐसा स्थान है जहां शांति, स्थिरता और सकारात्मकता का अनुभव होता है। इसकी विभिन्न प्रमुख कथाएं और प्राकृतिक सुंदरता यहाँ के यात्रियों के हृदय में बस जाती हैं। 13 किलोमीटर की चढ़ाई चढ़ते हुए हर यात्री गर्मियों में हरे-भरे पर्वतों और सर्दियों में बर्फ से ढके हिमालय पर्वत के रमणीय प्राकृतिक दृश्यों को आनंद लेने के साथ माता के दर्शनों की तत्परता में दिखाई देता है और दर्शन करने के बाद सुखद अनुभूति का अनुभव करता है।