केदारनाथ



केदारनाथ मंदिर, देवभूमि उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में हिमालय की गोद में स्थित एक पवित्र स्थान है और एक प्रमुख हिन्दू धार्मिक स्थल है जिसे शिवजी के प्रमुख पौराणिक रूप केदारनाथ को समर्पित किया गया है। इसे हिमालयी धार्मिक यात्राओं का महत्वपूर्ण स्थल माना जाता है। केदारनाथ अपने प्राकृतिक सौंदर्य, आत्मीय शांति, धार्मिक महत्व और बड़े संतों और ऋषियों के आकर्षण के कारण विश्व भर में आदरणीय है।

यह गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ को मिलाकर पूर्व के चार धामों में से एक है और 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह मंदिर हिमालय के श्रीकेदार क्षेत्र में स्थित है। यह मंदिर हिन्दू धर्म के महत्वपूर्ण तीर्थस्थलों में से एक है और विभिन्न ऋषि-मुनियों, पंडितों और संतों का पंथ है। इसे शिव की शक्ति, सौंदर्य और पावनता का प्रतीक माना जाता है। इसका इतिहास महाभारत के युद्ध काल से जुड़ा हुआ भी मन जाता है।

मंदाकिनी नदी के किनारे स्थित केदारनाथ मंदिर की विशेषता की बात करें, तो यह भगवान शिव के प्रमुख पूजा स्थलों में से एक है। पत्थरों से कत्यूरी शैली में बने इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण पाण्डवों के पौत्र महाराजा जन्मेजय ने करवाया था। यहाँ स्थित स्वयम्भू शिवलिंग अति प्राचीन है। आज का विज्ञान बताता है कि केदारनाथ मंदिर संभवतः 8वीं शताब्दी में बना था। और बाद में आदि शंकराचार्य ने भी इस मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाया था।

यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता और शांति मन को आत्मा से जोड़ने का अद्वितीय अनुभव प्रदान करती है। यहाँ का वातावरण मन को शुद्ध करता है और भक्तों को आध्यात्मिकता की प्राप्ति में सहायता करता है। यहाँ से निकलने वाली पांच नदियां मंदाकिनी, मधुगंगा, चिरगंगा, सरस्वती और स्वरंदरी, यहाँ की सुंदरता में स्वर्ग जैसा आनंद भर देती हैं। यहाँ का धार्मिक माहौल, प्राकृतिक शांति और आध्यात्मिक आनंद आपके मन, शरीर और आत्मा को पोषण और संतुष्टि प्रदान करता है।

केदारनाथ मन्दिर एक छह फीट ऊँचे चौकोर चबूतरे पर बना हुआ है। जब आप केदारनाथ मंदिर में प्रवेश करते हैं, तो आपका मन पहले ही इसका सौंदर्य और धार्मिक भाव की प्राकृतिक आभा से जुड़ जाता है। मन्दिर में मुख्य भाग मण्डप और गर्भगृह के चारों ओर प्रदक्षिणा पथ है। मन्दिर को तीन भागों में बाँटा जा सकता है गर्भगृह , मध्यभाग, सभा मण्डप । गर्भगृह के मध्य में भगवान श्री केदारेश्वर जी का स्वयंभू ज्योतिर्लिंग स्थित है। बाहर प्रांगण में नन्दी बैल वाहन के रूप में विराजमान हैं।

श्री केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग के चारों ओर विशालकाय चार स्तंभ विद्यमान है जिनको चारों वेदों का द्योतक माना जाता है और इन पर मन्दिर की कमलनुमा विशालकाय छत टिकी हुई है। ज्योतिर्लिंग के पश्चिमी ओर एक अखंड दीपक है जो कई हजारों वर्षों से निरंतर जल रहा है और इसकी देख-रेख और निरन्तर जलते रहने की जिम्मेदारी पूर्व काल से तीर्थ पुरोहितों यानी रावल जी की है।

केदारनाथ की अति सुन्दर और पावन भूमि के एक ओर 22,000 फीट ऊँचा केदारनाथ पर्वत, दूसरी ओर 21,600 फीट ऊँचा कराचकुंड और तीसरी ओर 22,700 फीट ऊँचा भरतकुंड है। ऐसे प्रतिकूल स्थान पर कलाकृति जैसा मन्दिर बनाना कितना बड़ा असम्भव कार्य रहा होगा। जो स्थान वर्ष में 6 माह पूरी तरह बर्फ से ढंका रहता हो और जहाँ वर्षा ऋतु में पर्वतों से तीव्र वेग में पानी का बहाव आता हो और जहाँ वर्ष में कई बार बादल फटने की घटनाएं होती हों और जहाँ आज भी आप वाहन के द्वारा उस स्थान तक नहीं जा सकते हों, ऐसी प्रतिकूल परिस्थितियों में 1200 वर्ष से भी अधिक पहले ऐसा अप्रतिम मंदिर कैसे बन सकता है? इतनी प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद यह मंदिर सहस्त्रों वर्षों से आज तक जस की तस स्थिति में खड़ा है और प्राचीन भारत के वास्तुशास्त्र ज्ञान का लोहा मनवाता है।

ऊँचे पर्वतीय शिखरों में घिर जाने से यहाँ का वातावरण मग्न कर देने वाला होता है। यहाँ की ध्वनि, उच्च सन्तुलित घोषणात्मक योग और धार्मिक उद्घोष, आस-पास की पर्वतीय सुंदरता आपको एक अद्वितीय उमंग से भर देते हैं। इस धार्मिक स्थान में प्रवेश करते ही, आपके सामने शिव की भक्ति की अंतर्मन शांति और सुखदता के रूप में अभिव्यक्त होगा। तांत्रिक, मौन और अंजनी सुरों से भरा यह धार्मिक स्थान मन को शांति और उमंग से भर देता है।

शीतकाल में केदारघाटी बर्फ से ढक जाती है। यद्यपि केदारनाथ-मन्दिर के किवाड़ खोलने और बन्द करने का मुहूर्त निकाला जाता है, किन्तु यह सामान्यत: नवम्बर माह की 15 तारीख से पूर्व (वृश्चिक संक्रान्ति से दो दिन पूर्व) बंद हो जाता है और छ: माह बाद अर्थात वैशाखी (13-14 अप्रैल) के बाद खुलता है।
मंदिर के कपाट शीतकाल में बंद होने की स्थिति में केदारनाथ की पंचमुखी प्रतिमा को ‘उखीमठ’ में लाया जाता है। इसी प्रतिमा की पूजा यहाँ भी रावल जी करते हैं।

केदारनाथ मंदिर तक पहुंचने का मार्ग भी बहुत रोमांचक और आकर्षक है। यहाँ पैदल, हेलीकॉप्टर, रेल और सड़क के माध्यम से आसानी से पहुंचा जा सकता है। केदारनाथ धाम से निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है। ऋषिकेश से आगे गौरीकुंड की यात्रा बस, टैक्सी या कार से कर सकते हैं। ऋषिकेश से केदारनाथ की दूरी लगभग 229 km है। गौरीकुंड से केदारनाथ पहुँचने के लिए 18 km पैदल चलना पड़ता है। आप फाटा या सेरसी से केदारनाथ तक की यात्रा हेलिकॉप्टर के माध्यम से भी कर सकते हैं।

केदारनाथ मंदिर को आध्यात्मिक, शांति, प्राकृतिक सुंदरता का एक महासंगम कहा जा सकता है। हर वर्ष लाखों भक्त इस मंदिर की यात्रा करते हैं और अपने मन की शांति और मुक्ति की कामना करते हैं। इस धाम के साथ जुड़ी लोक कथाओं, पौराणिक कथाओं और शानदार प्राकृतिक दृश्यों ने इसे अद्भुत स्थान बना दिया है, जहां लोग प्रकृति और धार्मिकता का एक मधुर संगम अनुभव करते हैं।

इसलिए यदि आप अपने आत्मिक मन को पोषित करना चाहते हैं, तो केदारनाथ मंदिर की एक बार यात्रा अवश्य करें और अपने जीवन में पवित्रता और आनंद प्राप्त करें।